शनिवार, 31 मई 2014

जो हालांकि होते हैं, पर नजर नहीं आते

जब अत्याचारी हो जाए सूरज
सूख जाएं नदियां
वीरान हो जाए धरती
और लगे कि सब कुछ खत्म हो गया
तब तुम
उन बीजों के बारे में सोचना
जो हालांकि होते हैं,
पर नजर नहीं आते।
उस बारिश के बारे में सोचना
जो होनी ही है,
किसी न किसी रोज।
और सोचना अपने बारे में।
अपनी जिंदा उम्मीदों के बारे में।
-केवलकृष्ण

रविवार, 11 मई 2014

साक्षात्कार

कितना अजीब लगता है
आइने के सामने खड़े होकर
यह सोचना 
कि ये चेहरा
कितना जाना पहचाना सा है.
अपनी ही गली में
खड़े होकर सोचना
कि शायद गुजरा हूं मैं भी कभी
यहीं से।
अपनी ही कविताओं को
किसी और की महसूस कर
बांचना।
अपने ही शब्दों को
अजनबी कर देना खुद से।
कितना अजीब लगता है
खुद से जुदा होकर
खुद का साक्षात्कार करना।
-केवलकृष्ण

रविवार, 20 अप्रैल 2014

राजीव लोचन के पुराने पड़ोसी

 धरती एक किताब है। पन्ने उलटिए और कहानियां बांचिए। इन दिनों जो कहानी बांची जा रही है, वह राजिम की है। कथावाचक हैं-डा.अरुण शर्मा। वही, जो सिरपुर की कथा के सूत्रधार भी है। राजिम में डा.शर्मा धरती की कई परतें उधेड़ चुके हैं। उम्मीद जागी है कि सिरपुर जितने ही पुराने इस शहर के पुरातात्विक इतिहास के उजागर हो रहे नये तथ्यों से पूरे अंचल के सांस्कृति वैभव की नयी कड़यां जुड़ेंगी। आधुनिक काल से लेकर ईसा पूर्व छटवीं शताब्दी तक के जनजीवन का अनुमान लगाया जा सकेगा। भगवान राजीव लोचन मंदिर परिसर के बाजू में डा.शर्मा खुदाई कर रहे हैं। शुरुआती परतों में जो सिक्के मिले हैं, उनमें आधुनिक भारत के सिक्कों से लेकर ब्रिटिशकालीन सिक्के तक शामिल हैं। इन्हीं में से एक सिक्के पर देवनागरी में कुछ लिखा है, अनुमान है कि यह किसी स्थानीय शासक द्वारा जारी किया गया रहा होगा। अभी इस पर लिखे बहादुर शब्द को ही पढ़ा जा सका है। सिक्के पर त्रिशुल जैसा कुछ बना है, जिस पर सर्प की आकृति है। शायद डमरू जैसा भी कुछ है। अभी इसका अध्ययन शेष है। बाद की परतों में विभिन्न कालखंडों की ईमारतों के अवशेष मिल रहे हैं। इनमें कुछ आवासीय हैं, तो कुछ के मंदिर होने का अनुमान है। दो बड़े स्तंभ प्राप्त हुए हैं। एक स्तंभ अभी मिट्टी की परतों में दबा हुआ है। यहां जो प्रमाण मिले हैं, उनसे अनुमान लगाया जा रहा है कि इसी जगह पर शंख से चूड़ियां बनाने का कारखाना हुआ करता था। शंख की चूड़ियों के अवशेष और बड़ी मात्रा में वेस्ट मटेरियल पाया गया है। यहां कांच की चूड़ियां बनाई जाती थीं, रंगीन चूड़ियां। कांच बनाने के लिए महानदी की ही रेत का इस्तेमाल किया जाता था। इस जगह पर जो मनके मिले हैं, वह बताते हैं कि विभन्न वर्ग की महिलाएं किस तरह की मालाएं पहना करती थीं। इन मनकों में जहां मिट्टी से बने मनके शामिल हैं, वहीं कांच और बेशकीमती पत्थरों के मनके भी हैं। कुछ मनके तो इतने सूक्ष्म हैं कि पुराविद इसके निर्माण के तकनीकी कौशल पर ही हैरान है। राजिम में मिल रही चीजें बताती हैं कि हमारे तीज-त्योहार कितने पुराने हैं। पोला का बैल और उसके चक्के यहां मिले हैं। ये बैल आज के मिट्टी के बैलों से ज्यादा सुघड़ और खूबसूरत हैं। यहां मिट्टी की देव्याकृति प्राप्त हुई है, मिट्टी का योनी पीठ और भगवान गणपति भी मिले हैं। यहीं पर भगवान पार्श्वनाथ की सूक्ष्म प्रतिमा मिली है, जो संभवतः अष्टधातु की है। इस प्रतिमा का कालखंड क्या है, इसका अध्ययन अभी बाकी है।...राजिम की खुदाई करते हुए पुराविद आसपास के ऐतिहासिक वैभव का भी स्मरण कर रहे हैं। पास ही में पैरी नदी पर पत्थरों को काटकर बनाए गए इतने विशाल बंदरगाह के प्रमाण मिले हैं, जिसमें एक साथ सात जहाज खड़े हो सकते थे। सिरकट्टी नाम की इस जगह पर पोर्ट टाउऩ और मेन टाउन होने का अनुमान भी प्राचीन टीलों से मिलता है।....सिरपुर, राजिम, तरीघाट समेत कई जगहों पर पिछले 10 सालों में पुरावैभव को सतह पर लाने की दिशा में जो काम हुआ है, वह संतोष तो देता है, लेकिन जितनी अपेक्षाएँ हैं, उनकी तुलना में संतुष्टि नहीं। सिरपुर में प्राप्त पुरावशेषों को ही अभी सहेजा नहीं जा सका है। वहां एक म्युजिम की बेसब्री से प्रतीक्षा की जा रही है। क्या बढ़िया होता कि सरकार इस दिशा में भी इतनी ही तेजी से काम करती।





शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

सुबह-सवेरे

सुबह-सवेरे
जब रजाई कुनमुना रही थी
चौखट पर खड़ी थी धूप
खिलखिला रही थी
वो झुग्गियों से आ रही थी
-केवलकृष्ण

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

करवट

अभी सब सो रहे हैं
सामने की वो टेबल, उस पर रखी किताबें
दीवार पर टंगा टेलीविजन
खिड़कियां, दरवाजे सब।
रातभर की चौकीदारी के बाद 
वो लट्टू भी उंघ रहा है
और मैंने अभी-अभी करवट बदली है।

टीssssटी हुट टीssssटी हुट
क्वांय क्वांय, क्वांय क्वांय
खिड़की के बाहर चीख रहा निशाचर
समेट रहा शायद निशाचरों को
चलो-चलो, भागो-भागो
हाथों में लट्ठ लिए सुकवा
इधर ही आ रहा है।

ये करवटों का वक्त है दोस्तों।
ये करवटों का असर है।

-केवलकृष्ण

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

बस अभी-अभी तो

बस अभी-अभी तो
जागा सुकवा
आखें मलता अभी अभी ।
बस अभी-अभी तो
सोचा सुकवा
बस अभी अभी तो।
बस अभी अभी तो पौ फटी।
बिखरी लाली अभी अभी
बस अभी-अभी तो उगी कविता
बस अभी-अभी
-केवलकृष्ण